Sunday, 26 April 2020

शर्म ना आया होगा ....

जब तुने उस मासूम बच्ची को देखा होगा,
देख के अपनी हवश बुझाने का सोचा होगा ।
और जब तुने अपना हाथ ,
उस तीन साल की मासूम बच्ची की तरफ उठाया होगा।
सच बता ?
क्या तुझे जरा भी शर्म ना आया होगा.....


सोंच-सोंच के उस पल को ,
सबकी आंखो में आंसू आया होगा ।
उन आंसुओ की एक-एक बूंदो ने,
तेरी मौत का दुआ मँगा होगा ।
और जब तुने घिनौनी हरकत,
उसके साथ किया होगा ।
सच बता ?
क्या तुझे जरा भी शर्म ना आया होगा....


जब तुने उसे पकड़ा होगा,
एक नन्ही सी गुड़िया को अपनी बैड़ी मे जकड़ा होगा ।
तुने उसके बदन से सारा कपड़ा फेका होगा,
वो रोई होगी....
चीखी होगी .....
चिल्लाई होगी .....
फिर भी तूने अपने हांथो को ना रोका होगा ...
सच बता ?
क्या तुझे जरा भी शर्म ना आया होगा ....


घिनौना काम करके भी,
जब तुने उससे जीने का हक भी छिना होगा ।
इतनी बेदर्दी से उसके इन छोटे-छोटे,
हाथ पैर को काट के फेका होगा ।
कितनी तड़पी होगी वो ,
फिर भी उसके दर्द को तुने ना समझा होगा ।
सच बता ?
क्या तुझे जरा भी शर्म ना आया होगा....


हाथ पैर छीनने के बाद भी,
उसकी धडकने ना थमी होगी ।
जीने की चाह लिये,
वो जिंदगी और मौत से लड़ी होगी ।
और फिर तुने दरिंदगी की सारी हदें पार करके ,
पैट्रोल की बुंदे डाली होगी ।
अपने हवश की चिंगारी से,
एक मासूम की जिंदगी को आग लगाई होगी ।
सच बता ?
क्या तुझे जरा भी शर्मिन्दगी महसूस ना हुई होगी ।